Friday, June 12, 2009

नारीशक्ति का आरक्षण

नारीशक्ति -आरक्षण -लोकतंत्र
भारत एक लोक तांत्रिक राष्ट्र है ,हम सेकुलरिस्म की परिभाषा हर जगह बखान करते हैं ,लेकिन जब नारी की बात अति है ,हम उसके पल्लो मैं मुंह छिपाने लगते हैं.आजकल ऐसा ही हमारी नव निर्वाचित पंचायत अथवा लोकसभा में हो रहा है .जिन्होंने अपनी घर का कम काज करनेवाली पत्नी को राज्य का मुख्यमंत्री बना दिया है, आज वोह कलावती,रामकली ,सत्यवती को ढूंढ रहे हैं ।
माँ.मुलायम सिंह जब भी नारी शक्ति के आरक्षण का मामला आता है नई -नई पारिभाषाएं तलाश करते नज़र आते हैं।
जब कलावती से मन भर जाता है नई सतावती ढूंढ लेते हैं.उस समय नहीं सोचते हैं ,की राष्ट्र को जबाब देना है।
लोकतंत्र केवल मर्दों के लिए हो ,ऐसा ही इनका मानना है.नारी केवल घर की शोभा रहे ,येही ऐसे लोग चाहते हैं ।
अकेली मा.सोनिआजी क्या कर लेगी, सौ .प्रियांकाजी ,चि .राजीव क्या अकेले ही राष्ट्र के बारे में सोचेंगे ,क्या यह लोग केवल सत्ता का सुख भोगेंगे ।
आरक्षण से पूर्व यह जरूरी है की प्रत्येक पार्टी अपनी -अपनी सदस्यता सूची लोक सभा में तुंरत प्रस्तुत करे और,मा .स्पीकर महोदया उकता सूची को राष्ट्र के सम्मुख रक्खे ,जिससे राष्ट्र को पता लग सके की कितनी नारी शक्ति इनके पास है .परिणाम साफ़ है ,इनकी सूची में नारी शक्ति होगी ही नही ,यदि चुनाव आयोग चुनाव के लिए महिल सीट आरक्षित न करे उस स्तिथि में कोई भी महिला विधानसभा और लोकसभा की सदस्य नही मिलेगी ।
इसका कारन स्पस्ट है यदि महिला सीट ३० प्रतिशत होंगी उस दशा में कद्दावार नेता (बहुवाली) कहाँ से आयेंगे ।
क्योंकि महिलाएं कद्दावर नेता नहीं .हो सकती .तब चुनाव कैसे जीतेंगे ,येही डर इन नेताओं को खाए जा रहा है।
लोक शक्ति-जनशक्ति की पार्टियाँ तो बन सकती हैं ,लेकिन उनका तथ्य चीपाया जाता है.येही इस देश का दुर्भाग्य है यह लोग कितनी पत्नियाँ लायेंगे ,जो कि विधानसभा और लोकसभा की सदस्य हो सकें ,जिससे इनकी दुकान चलती रहे ।
मीडिया वाले भी बहुत खूब जले पर नमक छिड़कते हैं ,अर्श से हाशिये पर ,स्वर्ग से जमीन ,नेताओं की फोटो दिखा दिखा कर पब्लिक की छाती पर खूब मूंग दल रहे हैं।
क्या सुश्री मायावती ,ममता बनर्जी, सुषमाजी ,दक्षिण देश की भ्होपूर्व मुख्यमंत्री सुश्री लालिताजी ,इस राष्ट्र की महिला शक्ति के बारे में कभी नहीं सोचती ,यह सत्य कभी नहीं सोचती उन्हें डर है यदि ऐसा हो गया उनकी सीट चली जायेगी ।
एक बार मा .खुस्वंत सिंह जी ने इल्स्त्रतेड वीकली में एक चुटकला दिया था ,की एक बार एक रूसी महानुभाव ,हमारे देश में पधारे थे ,जब वोह दिल्ली हवाई अड्डे पर उतरने के पश्चात् ,इस देश की आवो हवा देखी,हर फुटपाथ पर छोटे छोटे मन्दिर और कहीं कहीं बड़े बड़े मन्दिर हैं और लोग भगवा वस्त्र पहने हुए हैं ,उनको लगा यह देश किस प्रकार से चल रहा है ,दो चार माह के प्रवास पश्चात जब वह अपने देश जाने लगे ,तब पत्रकारों ने देखा की वह जनाब भगवा वस्त्र धारण किए हुए हैं,पत्रकारों उनके लिवास को देख कर ,उनके इस बदलाव के बारे में पूछा कि ऐसा क्यों हुआ ,तब उनका जबाब यह था कि आपका देश महान,इस देश को एपी लोग नहीं चला सकते ,इसको तो ऊपरवाला ही चला रहा है ,और में उस ऊपर वाले से प्रभावित हो करा भगवा वस्त्र धारण कर लिए हैं।
उसका जबाब आज के परिवेश को देखते हुए बिल्कुल ठीक लगता है।
क्या नई पीढी के पास कोई जबाब है ,शायद नहीं ,क्योंकि उनके पास तो अभी अपनी भूख शांत करने के उपाय खोजना है उसके पश्चात राष्ट्र को देखना है ,येही राष्ट्र भक्ति है.जय हो जय हो .