पवित्र पावनी गंगा एक अटूट आस्था ।
६० वर्ष तक हरिद्वार जाने की उत्कंठा रही ,लेकिन जब सुपुत्री का बेटा हुआ, उसका मुंडन संस्कार ,हरिद्वार मैं श्री माणसा देवी के समक्ष कराने का सौभाग्य मिला .सब कुछ अच्छा रहा ,वापिसी पर गुजरांवाला होटल के सामने बहते हुए नाले पर ध्यान गया .उस नाले मैं होटल्स ,दुकानों का गन्दा मलमूत्र जो कि हरी कि पौडी से कुछ ही दूरी पर है ,वोः गन्दा पानी ,पवित्र धरा मैं गिर रहा था .अनजाने में एक एहसास हुआ कि हरिद्वार से बहता हुआ जल,आगे गंगा जल कहलाता है,लेकिन हरद्वार वाले उसमें भी मिलावट करके जो कि कथनीया नहीं है आगे बीजवा देते हैं।
एसा तो सुना था कि
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