Wednesday, March 31, 2010

मैं डरपोक हूँ.

जब बच्चा था,तब मां बाप और घर बाहर के सभी बडे बुजुर्गों से डरा करता था.स्कूल गया तब गुरुजनोंऔर वरिश्ठ भाईयों से डरा.नौकरी की तब बास,और सीनिअर्स से डरा.शादी हुई तब से घरवाली से डरा.अब जब बच्चे बडे हुऐ तब उनसे डरता हूँ.यह डर की भावना कहाँ और कैसे पैदा हुई,आज तक नहीं समझ सका.
किसी प्रकार के कार्य करते समय श्री भगवान से डरता हूँ.शायद इसी तरह डरते डरते मौत को प्राप्त कर लूँगा.
श्रीमद्भागवत गीता में श्री क्रिश्ण जी ने कहा है--कर्म करते रहो फल की चिन्ता मत करो,लेकिन कर्म के समय जो डर पैदा होता है,उसका कोई उपाय नहीं बताया.

1 comment:

arvind said...

कर्म करते रहो फल की चिन्ता मत करो,लेकिन कर्म के समय जो डर पैदा होता है,उसका कोई उपाय नहीं बताया. ......bilkul sahi.